कैलाश मानसरोवर यात्रा


"सत्यम  शिवम् सुन्दरम" शिव ही सत्य है, शिव निरंकार है निर्मल चित से ही शिव की प्राप्ति है | शिव तो भोले है और भोलेनाथ तो सर्वत्र विराजते है | आज से लगभग 15-20 हजार वर्ष पूर्व जब  वराह काल की शुरुआत  हुई  तो देवी-देवताओं ने धरती पर कदम रखे, उसी  काल में धरती हिमयुग की चपेट में थी। उसी युग मे भगवान शंकर ने धरती के केंद्र कैलाश को अपना निवास स्थान बनाया।


कैलाश शिव का घर और पुराणों में कहा गया है की जहाँ शिव विराजते है ठीक उसी स्थान के नीचे, पाताल लोक है जो शिव का स्थान भी  है| कैलाश जिसके दक्षिण और पश्चिम में मानसरोवर और रक्षाशताल झील है और जो सिंधु, सतलुज, ब्रह्मपुत्र नदियों को उदगम भी है| समुद्र तल से 6,638 मीटर (21,778 फीट) की ऊंचाई परहिमालय पर स्थित कैलाश अद्भुत है| कैलाश को अस्टापद, गणपर्वत, रजतगिरि और मानसखंड भी कहते हैं। जैसा की पौराणिक कथाओं में कहा गया है भगवान ऋषभदेव ने भी यहीं निर्वाण प्राप्त किया। श्री भरतेश्वर स्वामी मंगलेश्वर श्री ऋषभदेव भगवान के पुत्र भरत ने दिग्विजय के समय इसे विजित किया। पांडवों  के दिग्विजय प्रयास के समय अर्जुन ने इस प्रदेश को विजित किया था। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में यहाँ के राजा ने उत्तम घोड़े, आभूषण, रत्न और याक के पूँछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए। इनके अलावा अनेक ऋषि मुनियों के यहाँ निवास करने के प्रमाण उल्लेखित है।

प्रचीन समय में जैन धर्म में कैलाश मानसरोवर का बहुत महत्व है। श्री भरत स्वामी इस स्थान पर रत्नों के 72 जिनालय बनवाये थे|


यह पर्वतमाला उतर में कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है तथा ल्हा चू व झोंग चू के बीच कैलाश पर्वत है उत्तरी शिखर का नाम कैलाश है। कैलाश पर्वत की आकृति  भव्य शिवलिंग की तरह प्रतीत होती है। यह सदैव बर्फ से ढका रहता है। तिब्बती (लामा) निवासियों की मान्यता है  कैलाश मानसरोवर की तीन अथवा तेरह परिक्रमा  दंड प्रणिपात करने से एक जन्म , दस परिक्रमा करने से एक कल्प के  पाप नष्ट हो जाते  है। व  108 परिक्रमा पूरी  करने पर उन्हें जन्म-मरण से मुक्ति मिल जाती है।

कैलाश-मानसरोवर  जाने के बहुत से  मार्ग हैं किंतु उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के अस्कोट, धारचूला, खेत, गर्ब्यांग,कालापानी, लिपूलेख, खिंड, तकलाकोट होकर जानेवाला मार्ग अपेक्षाकृत सुगम मार्ग  है।यह मार्ग 544 किमी (338 मील) लंबा है और इस मार्ग में  अनेक चढ़ाव उतार है। जाते समय सरलकोट तक 70 किमी (44 मील) की चढ़ाई है, उसके आगे 74 किमी (46 मील) उतरने का मार्ग  है। इस मार्ग में अनेक धर्मशाला और आश्रम है जहाँ यात्रियों को ठहरने की सुविधा प्राप्त  होती है। गर्विअंग में आगे की यात्रा के निमित्त याक, कुली, खच्चर आदि मिलते हैं। तकलाकोट तिब्बत में स्थित पहला ग्राम है जहाँ प्रति वर्ष ज्येष्ठ से कार्तिक मास तक बड़ा बाजार लगता है। तकलाकोट से तारचेन जाने के मार्ग के बीच में कैलाश मानसरोवर पड़ता है।

कैलाश की परिक्रमा तारचेन नामक स्थान  से आरंभ होकर उसी स्थान पर समाप्त होती है। तकलाकोट से 40 किमी (25 मील) पर मंधाता पर्वत स्थित गुर्लला का दर्रा 4,938 मीटर (16,200 फुट) की ऊँचाई पर है। इसके मध्य में पहले बाइर्ं ओर मानसरोवर और दाइर्ं ओर राक्षस ताल स्थित है। उत्तर की ओर दूर तक कैलाश पर्वत के हिमाच्छादित धवल शिखर का रमणीय दृश्य दिखाई पड़ता है। दर्रा समाप्त होने पर तीर्थपुरी नामक स्थान है जहाँ गर्म पानी के झरने हैं। इन झरनों के आसपास चूनखड़ी के टीले हैं। प्रवाद है कि यहीं भस्मासुर ने तप किया और यहीं वह भस्म भी हुआ था। इसके आगे डोलमाला और देवीखिंड ऊँचे स्थान है, उनकी ऊँचाई 5,630 मीटर (18,471 फुट) है। इसके समीप  ही गौरीकुंड है। मार्ग में स्थान स्थान पर तिब्बती लामाओं के मठ स्थित हैं।

कैलाश मानसरोवर यात्रा में सामान्यत: दो मास लगते हैं और बरसात आरंभ होने से पूर्व ज्येष्ठ मास के अंत तक यात्री अल्मोड़ा लौट आते हैं। इस प्रदेश में एक सुवासित वनस्पति पायी जाती है जिसे कैलास धूप कहते हैं। लोग इस वनस्पति को प्रसाद स्वरूप लाते हैं।
कैलाश पर्वत को भगवान शिव का घर कहा गया है। यहाँ  बर्फ ही बर्फ में भोले नाथ शंभू अंजान (ब्रह्म) तप में लीन शालीनता से, शांत ,निष्चल ,अघोर धारण किये हुऐ एकंत तप में लीन है।कैलाश पर्वत भगवान शिव एवं भगवान आदिनाथ के कारण ही संसार के सबसे पावन स्थानों में एक है ।


2 comments: